"So it is clear that neither than the MPs and MLAs help solve our daily problems, nor can they help in getting good laws passed. This is the dichotomy of the situation. We elect them, but they act according to the wishes of the party they belong to. And if they dont toe the party line, they are punished and may even have to lose the membership of the house or assembly. So, even if you elect a good and honest person as a MP or MLA from your area, it will neither solve the issues of your area, nor will he or she be able to help pass a good law. Isnt it a queer democracy, where neither the public is heard, nor its representatives?"
The above lines should touch a chord in every Indian hearts. It is difficult to argue with such powerful logic. And that is the central thrust of this book: that the people of India are effectively powerless, and have been emasculated by the current system. This is a feeling that all of us can empathise with, having dealt with it all of our adult lives. Arvind Kejriwal is a man who has worked in the system, and is aware of its many pluses and innumerable minuses. This comes out very well in the book, which makes it worth a read for that alone.
The key issue here is both the diagnosis of the problem, as well as the cure - if any. First, the problem. Mr Kejriwal makes a powerful case for the emasculation of the people and their utter helplessness to do anything about the current situation. This comes out most powerfully in the frank self-appraisal of the Jan Lokpal agitation, wherein the author agrees that it is difficult to imagine a situation in which any political par
ty can bring about a strong Lokpal. The bugbear of corruption is presented as one of the 2 or 3 central problems related to governance in India. The other problem is the total lack of accountability of the public servants in the state, central governments as well as the state and central bureaucracy. The way in which these people tend to serve their master rather than the people is brought out with stunning clarity. It helps you grasp the depth of the problem as well as the basic hindrances in the path of setting things right.
The second problem is related to the first; lack of effective utilisation of government funds, improper allocation and ineffective controls on the way these funds are spent - leading to the third problem, corruption. This is where Arvind Kejriwal is at his practical best. The focus of the book is on the centralised plannng model, which leads to fund allocation to the states and the districts. Schemes are run - and dictats are issued that this has to be done and this way. The concentration of power in one hand - or a few hands - combined with the lack of proper accountability leads to corruption as funds are misappropriated. The difficulty in seeking information (with regard to legal as well as real-world problems - like threats being issued) regarding funds and implementation completes the circle.
The net result of all this is the oft-repeated leakages in the system, where very little of the money actually spent reaches the people whom it is meant for. These people have no say whatsoever, and no recourse to rectify this issue. The current avenues are so tedious, so cumbersome, and have so little tangible results to show that people have lost faith in them. As anyone of you can see, this is a hard reality. That is the real power of this book - it goes into the root causes of corruption, lack of proper implementation, various problems ailing India like Land acquisition protests, Naxalism, MNREGA, concentration of power and the attendant lack of responsiveness of the system.
The utter helpless of the people to do anything has been brought out in an extremely lucid fashion; you will find yourself nodding your head in agreement. The diagnosis of the problems is spot on; not only that - there are no grandiose claims like demographic dividend, GDP growth etc. This is a book about the people of India, written by a common man for the people of India. The beauty of the book is that the solutions - with a few changes (in my opinion, of course) will lead to the realisation of those very same grandiose goals - Gini coefficient, GDP, Per capita income etc! Furthermore, the language and terminology used is very simple. Almost anyone can understand - there is no jargon in any of the 151 pages that comprise the book. It is a fast, fact-filled and fun read that has an excellent presentation and simple language. It is available in both Hindi and English.
The book also delves into solutions in some detail; this being too complex and too important a topic, I will deal with the solutions part in a separate review - the Part-2 of this book review. Suffice it to say that this is a book that attends to the real problems facing India - Health, Education, Life Expectancy - the core factors that determine how able a population is in taking advantage of the opportunities offered by a growing economy. This is a refreshing approach, and one that merits serious contemplation and study. Yes, there are lacunae, scope forimprovement as well as some criticisms. In a couple of areas, I felt that additional clarifications are needed; one area of the solution threw up questions in my mind as to the downside. But overall, I have to say that it is a much superior approach to the current one. With some details, practical methods and modifications, this could indeed be worth a try... What are the solutions presented? For that, read the Part-2 of this review. Watch this space!
देश में ग्रामसभा –ग्रामपंचायत –ग्रामसमिति ग्राम-कमेठी का स्वरूप पर मेरा विचार
ReplyDeleteदेश की ७० प्रतिशत आबादी गावँ में रहती है तो देश की ७० प्रतिशत समस्या भी गाँव में है अगर ७० प्रतिशत समस्या का समाधान हो तो देश की ७० प्रतिशत समस्या कम हो जाएगी मतबल ७० प्रतिशत जनता गावँ की समस्या ग्रामपंचायत या ग्रामसभा से ही संभव है
मै एक उदाहरण दे कर समझाने की कोशिश कर रहा हु ...... माना एक ग्रामपंचायत बनाई और उस गावँ में करीब १००० लोग रहते है १००० एकर जमीन है और गावँ के पास हर परिवार में ४-५ सस्दय है तो करीब ग़ाव की जमीन में करीब २५० की हिस्सेदारी हुई और अब सब के पास समान जमीन नहीं है किसी के पास १० एकर तो किसी के पास १/२ एकर है और कुछ जमीन पर कुछ ना कुछ क़ानूनी झमेलो में फंसी पड़ी वो जमीन करीब १५० एकर है वो २५ लोग की हिस्से दारी में आती है कुछ जमीन सरकारी वो करीब १५० एकर है और वहां खेती नहीं होती है कुछ जमीन साहूकार के पास गिरवीं है वो १०० एकर है वो २५ लोगो की हिस्सेदारी में आती है अब सब मिला कर १४०० एकर जमीन हुई और अगर सब साथ मिल कर खेती करे तो १०० एकर जमीन और निकलेगी वो कैसे ( हर १-२ एकर के बीच में पगडंडी और रास्ते है वो जमीन ) अब कुल मिला कर १५०० एकर जमीन और ३०० की हिस्सेदारी .. अब सब मिला कर खेती करते हो फसल ज्यादा होगी एक गावँ जरूरत की खेती बाड़ी मिलकर जो वहां के १००० लोग की साल भर की जरूरत को पूरा करे जैसे गेहू , चावल ,दाल, सब्ब्जियो जो वहां पर खेती होती वो गाँव वालो में बाँट कर जिसको (किसी के पास १० एकर है लेकिन उसको जो उस परिवार की साल भर की जरुरत को पूरा करे और किसी के पास १/२ एकर है और उसकी मजदूरी का पैसा मिला कर उस परिवार की जरुरत पूरा करे और जो मजदूरी के बदले लेना चाहता है उसको ) बची होलसेल में बचे
अब जिसके पास जमीन नहीं है वो या तो मजदूरी करते किसी अमीर व् साहूकार की जमीन जोतता है अब सभी मजदूरो या जो खेती में काम करना चाहता वो उनकी अच्छी पगार तय करे क्योकि मुनाफा पहले ज्यादा होगा और सब को अच्छी मजदूरी दे सकते है यह तो हुई मजदूरी की बात
अब सब पहले अपने अपनी जमीन के लिए बीज उर्वरक - खाद बिजल पानी ट्रेक्टर उसको लाने में तहसील या शहर के आने जाने का खर्चा होता है अब ग्रामपंचायत पुरे की खरीदी करेगी तो आने जाने खर्चा ,होलसेल बीज उर्वरक - खाद खरीद में बचत होलसेल में बेचने में फायदा नहीं तो अच्छी रेट आने पर बचे
अब फसल आने पर जिस की जितनी हिस्सेदारी है उतनी मुनाफा दे मतलब साहूकार की हिस्सेदारी २५ और २५ प्रतिशत क़ानूनी झमेले वाली अगर कोई दावेदार है तो बाकी २५० हिस्सेदार है
अब बाकी बची जमीन १०० एकर (पगडण्डी वाली )और सरकारी जमीन १५० एकर अब वो २५० एकर का हिस्सेदार गग्रामपंचायत होगा २५० एकर से जो पैसा मिलता है ग्रामपंचायत को चालने में और उसको गावं में अति गरीब , अबला नारी , वुजुर्ग ,बाल की भलाई में लगाए और बाकी बचे पैसे में पानी बिजली ट्रेक्टर का सही इंतजाम करने में और बचे तो वेयरहाउस (गोदाम )बनाए अगर सरकारी मद्दत की जरूरत हो तो ग्रामपंचायत के माध्यम से मिले
अब सबसे पहले सरकारी सब्सिडी जो अलग अलग योजनाओ में जो सरकार देती वो सब बंद करे फिर ग्रामपंचायत को जिस काम के लिए जरूरत है वो ही फंड रिजील करे
अब कुछ लोग ग्रामपंचायत में नहीं आना चाहेंगे
ReplyDeleteअब कुछ लोग ग्रामपंचायत में नहीं आना चाहेंगे
उसका मेरा जबाब यह की जब सकारी सब्सिडी के रूप में जो सहायता मिलती थी जब वो सहयता केवल ग्रामपंचायत को ही मिलेगी तो वो लोग भी उसमे अपने आप जुडेगे नहीं तो सरकारी (कर ,टेक्स ) का हंटर है
अब सरकार भी सही योजनायें बना पाएगी जैसे सभी को सामान शिक्षा ,समान स्वास्थ्य सुविधा ,सभी को समान अधिकार
अब देश में सबसे ज्यादा क़ानूनी केस जमीन जायदात के है उस में हल करने में सुविधा होगी
ग्रामपंचायत की देख रेख में और भी काम काज किये जा है जैसे पशु पालन ,मुर्गीपालन , खेती आधारित उद्योग ,हस्तकला ,छोटे मोटे उद्योग लगाए जा सकते है जिसकी जितनी काम करने की समता के ऊपर निर्भर है
ग्रामपंचायत बनने से बुराईयों पर जैसे शराब ,जुआ ,बलात्कार ,बाल मजदूरी ,अबलानारी ,विधवाओं बुजर्ग को समान का जीवन ,आदि ....
पुलिस का रवैया भी बदलेगा
ग्रामपंचायत बनने से जो शहर की ओर जाने वाले लोग गाँव मै ही बसना चाहेंगे और जो शहर में है वो भी गावँ में जाना चाहेंगे
ग्रामपंचायत बनने से देश की सही जनसख्या का पता लगेगा क्योकि अब तक जो गाँव में और शहर में है वो दोनों जगह का सरकारी सब्सिडी का दुरुपयोग करते है
ग्रामपंचायत बनने से भूमि अधिघरण का दुरुपयोग नहीं होगा अगर कोई करना भी चाहेगा तो सही दाम और सही रोजगार की जरूरत पूरी करेगा क्योकि सघठन में शक्ति होती है जो बिखरा पड़ा उसको लालच का दबाब या मार पीटकर छिन नहीं सकता है
ग्रामपंचायत बनने से भस्ठाचार पे रोक लगेगी क्योकि सब काम ग्रामपंचायत के माध्यम से हो जाए करेगे जैसे पुलिस ,सरकारी ,अस्पातल ,स्कूल ,आदि जगह पर एक आम आदमी का बोलना या जाना और उसके पीछे पूरा ग्रामपंचायत है वो ही उसकी पहचान है
ग्रामपंचायत बनने से देश की ७० प्रतिशत समस्याओ को हल होगा बाकी बची ३० प्रतिशत के लिए मेरे अगले विचार लिखने तक .......रुके ......
ग्राम सभा का स्वरुप यानी चुनने कैसे
• गरीबो को ३० प्रतिशत ( जिसके पास जमीन ना हो यानी मजबूर या मजदुर ) पर उनकी जिनकी काबिलियत हो
• महिलाओ को ४० प्रतिशत ( उसमे भी जिसके पास जमीन ना हो उनका ७० प्रतिशत ) पर उनकी जिनकी काबिलियत हो
• बाकी ३० प्रतिशत जिनकी काबिलियत हो
• इनके चुनाव के बाद एक ग्रामपंच-ग्राम प्रधान चुने फिर बाकी के पद उनमे से जैसे कोषाध्यक्ष ( खातो की निगरानी करेगा )
• एक वकील जो क़ानूनी समस्या देखे
• एक ड्रोक्टर जो स्वास्थ विभाग
• एक पुलिसवाला जो झगडे टंटे देखे
• सभी नई काम में बदलावों लाए या सरकारी फण्ड या आपातकाली स्थति पर सब मिल कर फैसाला ले
•
• ग्रामपंचायत सभी को एक कार्ड से जैसे (आधार कार्ड )उसमे पुलिसवाला, ड्रोक्टर , वकील , ग्राम प्रधान की मंजूरी हो
• कार्ड में उसकी जमीन या मजदूरी का हिस्सा तय हो
• कार्ड में उसकी स्वास्थ की जानकारी लिखा हो
• कार्ड में उसकी आदि आदि ...
•
•
1. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो आरक्षण के मुद्दे का सही समाधान होगा
2. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो समान सिक्षा का समाधान होगा
3. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो समान स्वास्थ का समाधान होगा
4. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो समान सुरक्षा का समाधान होगा
5. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो समान जीवन का समाधान होगा
6. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो समान धार्मिक (जातिवाद ) का समाधान होगा
7. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो समान व्यवस्था का समाधान होगा
8. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो माहिलो का समान अधिकार दे समाधान होगा
9. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो माहिलो का समान अधिकार दे समाधान होगा तो बलात्चार का सवाल पैदा होता है
10. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो भाष्ठाचार समाधान होगा
11. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो कुपोषण समाधान होगा
12. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो रोजगार समाधान होगा
13. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो भाष्ठाचार समाधान होगा बाल विधवा अबला वर्द्ध
14. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो बाल विधवा अबला वर्द्ध को सही समान समाधान होगा
15. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो कुरितियो जैसे शराबी,जुआ रेप आदि समस्याओ का समाधान होगा
16. इस प्रकार ग्रामपंचायत पंचायत का संचालन करे तो देश की ७० प्रतिशत समस्याओ का समाधान होगा
और भी ब्लॉग देख http://kishan13g.blogspot.in/?view=flipcard