मन ब्रह्म है - यह अध्यात्म दृष्टी से उपासना करें ; आकाश ब्रह्म है - यह आधिदैविक दृष्टी से उपासना करें ; इस प्रकार अध्यात्म व अधिदैवत दोनों का उपदेश किया गया . मनःसंज्ञक के चार पाद - वाक् , प्राण , चक्षु व् श्रोत्र ; अधिदैवत { आकाशसंज्ञक ब्रह्म } के चार पाद - अग्नि वायु आदित्य व दिशाएं … मनोमय व् आकाशसंज्ञा ब्रह्म के पाद का वर्णन : वाक् अग्निरूप ज्योति से प्रज्वलित होता है ; वायु से ही प्राण दीप्त होता है व् गंधग्रहण करता है ; आदित्य की ज्योति से ही चक्षु दीप्त होता है ; श्रोत्र शब्दग्रहण के किये दिशायों द्वारा प्रोत्साहित होता है This above is a summary of छान्दोग्योपनिषद तृतीय अध्याय अष्टादश खंड , referenced and/or translated and/or summarized from छान्दोग्योपनिषद गीता प्रेस पृ ३१२ - ३१६ and सुबोध उपनिषद् संग्रह पृ ३६३ - ३६४ . RELATIONSHIP BETWEEN SPEECH AND GOD There are many learnings from this chapter of The Chhandog...
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